
मेरा पहला इश्क़, इश्क़ था भी या नहीं मैं नहीं जानती ।
मेरे लिए वो सब कुछ था
वो लम्हा ही सब कुछ था , वो पल ही सब कुछ था ।
उसके लिए इश्क़ था या नहीं , मैं नहीं जानती ।
मेरी राहों पे चलता था , मेरे रंगों में बहता था
पर इश्क़ था या नहीं , मैं नहीं जानती ।
मेरे साथ रहता था , उसके साथ में मैं रहती थी
पर वो इश्क़ था या नहीं , मैं नहीं जानती ।
ना जान पायी हूँ अब तक , ना जान पायी थी तब
जब वो मुझे छूता था , वो मेरे लिए इश्क़ था या नहीं मैं नहीं जानती ।
दुनिया कहती रही मैं पागल, दुनिया कहती रही मैं जाहिल
पर वो मेरे लिए इश्क़ था , यह मैं जानती थी ।
मेरी आँखो को पढ़ता था या नहीं , पता नहीं
लेकिन उसकी आँखो में दिखता था , वो इश्क़ नहीं तो क्या था ।
मेरी चाहतों में उसका नाम था , मेरी दुआएँ उसकी ग़ुलाम
मेरे लब उसकी जायदाद , पर वो मेरा इश्क़ था ।
मैंने कभी नहीं जाना , की वो क्यूँ गया कहाँ गया
पर आज जो मेरे पास है , उसकी यादें , वो मेरे इश्क़ हैं ।
मेरी दुनिया में वो आज भी है
मेरे सपनो में वो आज भी है
दिन ढल गए, रातें गुजर गयी
लेकिन जो राह गया , वो इश्क़ है या नहीं , मैं नहीं जान पायी ।
उसका एहसास , है मेरे पास
उसका एहसान , है मेरे नाम
लेकिन वो एहसान था या इश्क़,मैं नहीं जानती ।
Pahla pyaar kabhi bhool nahi sakta koi insaan…
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बहुत खूब।
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I loved this poem so much. I lived a love life in your poems. Really heart💓 touching. keep it up and write more.
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Thank you so much. This means a lot. ♥️
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Most welcome Samina
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मर्म से भरा
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beete lamho me le gye aapke poem ke words… nicely written
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शुक्रिया बोहोत बोहोत ।
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👌👌
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👌👌
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